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hari सरस्वती अष्टोत्तरनामावलि r


||सरस्वती अष्टोत्तरनामावलि ||

सरस्वत्यै नमः |
महाभद्रायै नमः |
महामायायै नमः |
वरप्रदायै नमः |
श्रीप्रदायै नमः |
पद्मनिलयायै नमः |
पद्माक्ष्यै नमः |
पद्मवक्त्रायै नमः |
शिवानुजायै नमः |
पुस्तकभृते नमः | १०
ज्ञानमुद्रायै नमः |
रमायै नमः |
परायै नमः |
कामरूपायै नमः |
महाविद्यायै नमः |
महापातक नाशिन्यै नमः |
महाश्रयायै नमः |
मालिन्यै नमः |
महाभोगायै नमः |
महाभुजायै नमः | २०
महाभागायै नमः |
महोत्साहायै नमः |
दिव्याङ्गायै नमः |
सुरवन्दितायै नमः |
महाकाल्यै नमः |
महापाशायै नमः |
महाकारायै नमः |
महांकुशायै नमः |
पीतायै नमः |
विमलायै नमः | ३०
विश्वायै नमः |
विद्युन्मालायै नमः |
वैष्णव्यै नमः |
चन्द्रिकायै नमः |
चन्द्रवदनायै नमः |
चन्द्रलेखाविभूषितायै नमः |
सावित्र्यै नमः |
सुरसायै नमः |
देव्यै नमः |
दिव्यालंकारभूषितायै नमः | ४०
वाग्देव्यै नमः |
वसुधायै नमः |
तीव्रायै नमः |
महाभद्रायै नमः |
महाबलायै नमः |
भोगदायै नमः |
भारत्यै नमः |
भामायै नमः |
गोविन्दायै नमः |
गोमत्यै नमः | ५०
शिवायै नमः |
जटिलायै नमः |
विन्ध्यावासायै नमः |
विन्ध्याचलविराजितायै नमः |
चण्डिकायै नमः |
वैष्णव्यै नमः |
ब्राह्मयै नमः |
ब्रह्मज्ञानैकसाधनायै नमः |
सौदामिन्यै नमः |
सुधामूर्त्यै नमः | ६०
सुभद्रायै नमः |
सुरपूजितायै नमः |
सुवासिन्यै नमः |
सुनासायै नमः |
विनिद्रायै नमः |
पद्मलोचनायै नमः |
विद्यारूपायै नमः |
विशालाक्ष्यै नमः |
ब्रह्मजायायै नमः |
महाफलायै नमः | ७०
त्रयीमूर्त्यै नमः |
त्रिकालज्ञायै नमः |
त्रिगुणायै नमः |
शास्त्ररूपिण्यै नमः |
शुम्भासुरप्रमथिन्यै नमः |
शुभदायै नमः |
स्वरात्मिकायै नमः |
रक्तबीजनिहन्त्र्यै नमः |
चामुण्डायै नमः |
अम्बिकायै नमः | ८०
मुण्डकायप्रहरणायै नमः |
धूम्रलोचनमर्दनायै नमः |
सर्वदेवस्तुतायै नमः |
सौम्यायै नमः |
सुरासुर नमस्कृतायै नमः |
कालरात्र्यै नमः |
कलाधारायै नमः |
रूपसौभाग्यदायिन्यै नमः |
वाग्देव्यै नमः |
वरारोहायै नमः | ९०
वाराह्यै नमः |
वारिजासनायै नमः |
चित्राम्बरायै नमः |
चित्रगन्धायै नमः |
चित्रमाल्यविभूषितायै नमः |
कान्तायै नमः |
कामप्रदायै नमः |
वन्द्यायै नमः |
विद्याधरसुपूजितायै नमः |
श्वेताननायै नमः | १००
नीलभुजायै नमः |
चतुर्वर्गफलप्रदायै नमः |
चतुरानन साम्राज्यायै नमः |
रक्तमध्यायै नमः |
निरंजनायै नमः |
हंसासनायै नमः |
नीलजङ्घायै नमः |
ब्रह्मविष्णुशिवान्मिकायै नमः | १०८
||इति श्री सरस्वति अष्टोत्तरशत नामावलिः ||
.. श्री सरस्वत्यष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ..
सरस्वती महाभद्रा महामाया वरप्रदा .
श्रीप्रदा पद्मनिलया पद्माक्षी पद्मवक्त्रगा .. ..
शिवानुजा पुस्तकधृत् ज्ञानमुद्रा रमा परा .
कामरूपा महाविद्या महापातकनाशिनी .. ..
महाश्रया मालिनी  महाभोगा महाभुजा .
महाभागा महोत्साहा दिव्याङ्गा सुरवंदिता .. ..
महाकाली महापाशा महाकारा महाङ्कुशा .
सीता  विमला विश्वा विद्युन्माला  वैष्णवी .. ..
चंद्रिका चंद्रवदना चंद्रलेखाविभूषिता .
सावित्री सुरसा देवी दिव्यालंकारभूषिता .. ..
वाग्देवी वसुधा तीव्रा महाभद्रा महाबला .
भोगदा भारती भामा गोविंदा गोमती शिवा .. ..
जटिला विंध्यवासा  विंध्याचलविराजिता .
चंडिका वैष्णवी ब्राह्मी ब्रह्मज्ञानैकसाधना .. ..
सौदामिनी सुधामूर्तिस्सुभद्रा सुरपूजिता .
सुवासिनी सुनासा  विनिद्रा पद्मलोचना .. ..
विद्यारूपा विशालाक्षी ब्रह्मजाया महाफला .
त्रयीमूर्ती त्रिकालज्ञा त्रिगुणा शास्त्ररूपिणी .. ..
शुंभासुरप्रमथिनी शुभदा  सर्वात्मिका .
रक्तबीजनिहंत्री  चामुण्डा चांबिका तथा .. १०..
मुण्डकाय प्रहरणा धूम्रलोचनमर्दना .
सर्वदेवस्तुता सौम्या सुरासुरनमस्कृता .. ११..
कालरात्री कलाधारा रूप सौभाग्यदायिनी .
वाग्देवी  वरारोहा वाराही वारिजासना .. १२..
चित्रांबरा चित्रगंधा चित्रमाल्यविभूषिता .
कांता कामप्रदा वंद्या विद्याधरा सूपूजिता .. १३..
श्वेतासना नीलभुजा चतुर्वर्गफलप्रदा .
चतुराननसाम्राज्या रक्तमध्या निरंजना .. १४..
हंसासना नीलजङ्घा ब्रह्मविष्णुशिवात्मिका .
एवं सरस्वती देव्या नाम्नामष्टोत्तरशतम् .. १५..
इति श्री सरस्वत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ..
.. श्रीसरस्वती स्तुति..
 
या कुन्देन्दु- तुषारहार- धवला या शुभ्र- वस्त्रावृता
     या वीणावरदण्डमन्डितकरा या श्वेतपद्मासना |
या ब्रह्माच्युत- शंकर- प्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता
     सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा || ||
 
दोर्भिर्युक्ता चतुर्भिः स्फटिकमणिमयीमक्षमालां दधाना
     हस्तेनैकेन पद्मं सितमपि  शुकं पुस्तकं चापरेण |
भासा कुन्देन्दु- शंखस्फटिकमणिनिभा भासमानाऽसमाना
     सा मे वाग्देवतेयं निवसतु वदने सर्वदा सुप्रसन्ना || ||
 
आशासु राशी भवदंगवल्लि
     भासैव दासीकृत- दुग्धसिन्धुम् |
मन्दस्मितैर्निन्दित- शारदेन्दुं
     वन्देऽरविन्दासन- सुन्दरि त्वाम् || ||
 
शारदा शारदाम्बोजवदना वदनाम्बुजे |
सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात् || ||
 
सरस्वतीं  तां नौमि वागधिष्ठातृ- देवताम् |
देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः || ||
 
पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्नः सरस्वती |
प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या || ||
 
शुद्धां ब्रह्मविचारसारपरमा- माद्यां जगद्व्यापिनीं
     वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् |
हस्ते स्पाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां
     वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् || ||
 
वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले
     भक्तार्तिनाशिनि विरिंचिहरीशवन्द्ये |
कीर्तिप्रदेऽखिलमनोरथदे महार्हे
     विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम् || ||
 
श्वेताब्जपूर्ण- विमलासन- संस्थिते हे
     श्वेताम्बरावृतमनोहरमंजुगात्रे |
उद्यन्मनोज्ञ- सितपंकजमंजुलास्ये
     विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम् || ||
 
मातस्त्वदीय- पदपंकज- भक्तियुक्ता
     ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय |
ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण
     भूवह्नि- वायु- गगनाम्बु- विनिर्मितेन || १०||
 
मोहान्धकार- भरिते हृदये मदीये
     मातः सदैव कुरु वासमुदारभावे |
स्वीयाखिलावयव- निर्मलसुप्रभाभिः
     शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम् || ११||
 
ब्रह्मा जगत् सृजति पालयतीन्दिरेशः
     शम्भुर्विनाशयति देवि तव प्रभावैः |
 स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे
      स्युः कथंचिदपि ते निजकार्यदक्षाः || १२||
 
लक्ष्मिर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तृष्टिः प्रभा धृतिः |
एताभिः पाहि तनुभिरष्टभिर्मां सरस्वती || १३||
 
सरसवत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः
वेद- वेदान्त- वेदांग- विद्यास्थानेभ्य एव  || १४||
 
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने |
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तु ते || १५||
 
यदक्षर- पदभ्रष्टं मात्राहीनं  यद्भवेत् |
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि || १६||
 
      || इति श्रीसरस्वती स्तोत्रं संपूर्णं||
.. शनैश्चरस्तोत्रम् ..          .. श्रीशनैश्चरस्तोत्रम् .. 
अस्य श्रीशनैश्चरस्तोत्रस्य दशरथ ऋषिः . शनैश्चरो देवता . त्रिष्टुप् छन्दः . . शनैश्चरप्रीत्यर्थ जपे विनियोगः.
दशरथ उवाच --
कोणोऽण्तको रौद्रयमोऽथ बभ्रुः कृष्णः शनिः पिंगलमन्दोसौरिः .
नित्यं स्मृतो यो हरते  पीडां तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय .. ..
सुरासुराः किंपुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च .
पीड्यन्ति सर्वे विषमश्थितेन तस्मैइ नमः श्रीरविनन्दनाय .. ..
नरा नरेन्द्राः पशवो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतंगभृङ्गाः .
पीड्यन्ति सर्वे विषमश्थितेन तस्मैइ नमः श्रीरविनन्दनाय .. ..
देशाश्च दुर्गाणि वनाणि यत्र सेनानिवेशाः पुरपत्तनानि .
पीड्यन्ति सर्वे विषमश्थितेन तस्मैइ नमः श्रीरविनन्दनाय .. ..
तिलैर्यवैर्माषगुडान्नदानैर्लोहेन नीलाम्बरदानतो वा .
प्रीणाति मन्त्रैर्निजवसरे  तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय .. ..
प्रयागकूले यमुनातटे  सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम् .
यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय .. ..
अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे  नरः सुखी स्यत् .
गृहाद् गतो यो  पुनः प्रयाति तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय .. ..
स्रष्टा स्वयंभूर्भुवनत्रयस्य त्राता हरीशो हरते पिनाकी .
एकस्त्रिधाअ ऋग्ययजुःसाममूर्तिस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय .. ..
शन्यष्टकं  यः प्रयतः प्रभते
नित्यं सुपुत्रैः पशुबान्धवैश्च .
पठेत्तु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः
प्राप्नोति निर्वाणपदं तदन्ते .. ..
कोणस्थः पिङ्गलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः .
सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः .. १०..
एतानि दश नामाअनि प्रातरुत्थाय यः पठेत् .
शनैश्चरकृता पीडा  कदाचिद्भविष्यति .. ११..
          .. इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे श्रीशनैश्चरस्तोत्रं संपूर्णम् ..

||शनि अष्टोत्तरशतनामावलिः ||

शनि बीज मन्त्र -
प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः ||

शनैश्चराय नमः ||
शान्ताय नमः ||
सर्वाभीष्टप्रदायिने नमः ||
शरण्याय नमः ||
वरेण्याय नमः ||
सर्वेशाय नमः ||
सौम्याय नमः ||
सुरवन्द्याय नमः ||
सुरलोकविहारिणे नमः ||
सुखासनोपविष्टाय नमः ||१०
सुन्दराय नमः ||
घनाय नमः ||
घनरूपाय नमः ||
घनाभरणधारिणे नमः ||
घनसारविलेपाय नमः ||
खद्योताय नमः ||
मन्दाय नमः ||
मन्दचेष्टाय नमः ||
महनीयगुणात्मने नमः ||
मर्त्यपावनपदाय नमः ||२०
महेशाय नमः ||
छायापुत्राय नमः ||
शर्वाय नमः ||
शततूणीरधारिणे नमः ||
चरस्थिरस्वभावाय नमः ||
अचञ्चलाय नमः ||
नीलवर्णाय नमः ||
नित्याय नमः ||
नीलाञ्जननिभाय नमः ||
नीलाम्बरविभूशणाय नमः ||३०
निश्चलाय नमः ||
वेद्याय नमः ||
विधिरूपाय नमः ||
विरोधाधारभूमये नमः ||
भेदास्पदस्वभावाय नमः ||
वज्रदेहाय नमः ||
वैराग्यदाय नमः ||
वीराय नमः ||
वीतरोगभयाय नमः ||
विपत्परम्परेशाय नमः ||४०
विश्ववन्द्याय नमः ||
गृध्नवाहाय नमः ||
गूढाय नमः ||
कूर्माङ्गाय नमः ||
कुरूपिणे नमः ||
कुत्सिताय नमः ||
गुणाढ्याय नमः ||
गोचराय नमः ||
अविद्यामूलनाशाय नमः ||
विद्याविद्यास्वरूपिणे नमः ||५०
आयुष्यकारणाय नमः ||
आपदुद्धर्त्रे नमः ||
विष्णुभक्ताय नमः ||
वशिने नमः ||
विविधागमवेदिने नमः ||
विधिस्तुत्याय नमः ||
वन्द्याय नमः ||
विरूपाक्षाय नमः ||
वरिष्ठाय नमः ||
गरिष्ठाय नमः ||६०
वज्राङ्कुशधराय नमः ||
वरदाभयहस्ताय नमः ||
वामनाय नमः ||
ज्येष्ठापत्नीसमेताय नमः ||
श्रेष्ठाय नमः ||
मितभाषिणे नमः ||
कष्टौघनाशकर्त्रे नमः ||
पुष्टिदाय नमः ||
स्तुत्याय नमः ||
स्तोत्रगम्याय नमः ||७०
भक्तिवश्याय नमः ||
भानवे नमः ||
भानुपुत्राय नमः ||
भव्याय नमः ||
पावनाय नमः ||
धनुर्मण्डलसंस्थाय नमः ||
धनदाय नमः ||
धनुष्मते नमः ||
तनुप्रकाशदेहाय नमः ||
तामसाय नमः ||८०
अशेषजनवन्द्याय नमः ||
विशेशफलदायिने नमः ||
वशीकृतजनेशाय नमः ||
पशूनां पतये नमः ||
खेचराय नमः ||
खगेशाय नमः ||
घननीलाम्बराय नमः ||
काठिन्यमानसाय नमः ||
आर्यगणस्तुत्याय नमः ||
नीलच्छत्राय नमः ||९०
नित्याय नमः ||
निर्गुणाय नमः ||
गुणात्मने नमः ||
निरामयाय नमः ||
निन्द्याय नमः ||
वन्दनीयाय नमः ||
धीराय नमः ||
दिव्यदेहाय नमः ||
दीनार्तिहरणाय नमः ||
दैन्यनाशकराय नमः ||१००
आर्यजनगण्याय नमः ||
क्रूराय नमः ||
क्रूरचेष्टाय नमः ||
कामक्रोधकराय नमः ||
कलत्रपुत्रशत्रुत्वकारणाय नमः ||
परिपोषितभक्ताय नमः ||
परभीतिहराय नमः ||
भक्तसंघमनोऽभीष्टफलदाय नमः ||
||इति शनि अष्टोत्तरशतनामावलिः सम्पूर्णम् ||


||शुक्र अष्टोत्तरशतनामावलिः ||

शुक्र बीज मन्त्र -
द्राँ द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः ||

शुक्राय नमः ||
शुचये नमः ||
शुभगुणाय नमः ||
शुभदाय नमः ||
शुभलक्षणाय नमः ||
शोभनाक्षाय नमः ||
शुभ्रवाहाय नमः ||
शुद्धस्फटिकभास्वराय नमः ||
दीनार्तिहरकाय नमः ||
दैत्यगुरवे नमः ||१०
देवाभिवन्दिताय नमः ||
काव्यासक्ताय नमः ||
कामपालाय नमः ||
कवये नमः ||
कल्याणदायकाय नमः ||
भद्रमूर्तये नमः ||
भद्रगुणाय नमः ||
भार्गवाय नमः ||
भक्तपालनाय नमः ||
भोगदाय नमः ||२०
भुवनाध्यक्षाय नमः ||
भुक्तिमुक्तिफलप्रदाय नमः ||
चारुशीलाय नमः ||
चारुरूपाय नमः ||
चारुचन्द्रनिभाननाय नमः ||
निधये नमः ||
निखिलशास्त्रज्ञाय नमः ||
नीतिविद्याधुरंधराय नमः ||
सर्वलक्षणसंपन्नाय नमः ||
सर्वापद्गुणवर्जिताय नमः ||३०
समानाधिकनिर्मुक्ताय नमः ||
सकलागमपारगाय नमः ||
भृगवे नमः ||
भोगकराय नमः ||
भूमिसुरपालनतत्पराय नमः ||
मनस्विने नमः ||
मानदाय नमः ||
मान्याय नमः ||
मायातीताय नमः ||
महायशसे नमः ||४०
बलिप्रसन्नाय नमः ||
अभयदाय नमः ||
बलिने नमः ||
सत्यपराक्रमाय नमः ||
भवपाशपरित्यागाय नमः ||
बलिबन्धविमोचकाय नमः ||
घनाशयाय नमः ||
घनाध्यक्षाय नमः ||
कम्बुग्रीवाय नमः ||
कलाधराय नमः ||५०
कारुण्यरससंपूर्णाय नमः ||
कल्याणगुणवर्धनाय नमः ||
श्वेताम्बराय नमः ||
श्वेतवपुषे नमः ||
चतुर्भुजसमन्विताय नमः ||
अक्षमालाधराय नमः ||
अचिन्त्याय नमः ||
अक्षीणगुणभासुराय नमः ||
नक्षत्रगणसंचाराय नमः ||
नयदाय नमः ||६०
नीतिमार्गदाय नमः ||
वर्षप्रदाय नमः ||
हृषीकेशाय नमः ||
क्लेशनाशकराय नमः ||
कवये नमः ||
चिन्तितार्थप्रदाय नमः ||
शान्तमतये नमः ||
चित्तसमाधिकृते नमः ||
आधिव्याधिहराय नमः ||
भूरिविक्रमाय नमः ||७०
पुण्यदायकाय नमः ||
पुराणपुरुषाय नमः ||
पूज्याय नमः ||
पुरुहूतादिसन्नुताय नमः ||
अजेयाय नमः ||
विजितारातये नमः ||
विविधाभरणोज्ज्वलाय नमः ||
कुन्दपुष्पप्रतीकाशाय नमः ||
मन्दहासाय नमः ||
महामतये नमः ||८०
मुक्ताफलसमानाभाय नमः ||
मुक्तिदाय नमः ||
मुनिसन्नुताय नमः ||
रत्नसिंहासनारूढाय नमः ||
रथस्थाय नमः ||
रजतप्रभाय नमः ||
सूर्यप्राग्देशसंचाराय नमः ||
सुरशत्रुसुहृदे नमः ||
कवये नमः ||
तुलावृषभराशीशाय नमः ||९०
दुर्धराय नमः ||
धर्मपालकाय नमः ||
भाग्यदाय नमः ||
भव्यचारित्राय नमः ||
भवपाशविमोचकाय नमः ||
गौडदेशेश्वराय नमः ||
गोप्त्रे नमः ||
गुणिने नमः ||
गुणविभूषणाय नमः ||
ज्येष्ठानक्षत्रसंभूताय नमः ||१००
ज्येष्ठाय नमः ||
श्रेष्ठाय नमः ||
शुचिस्मिताय नमः ||
अपवर्गप्रदाय नमः ||
अनन्ताय नमः ||
सन्तानफलदायकाय नमः ||
सर्वैश्वर्यप्रदाय नमः ||
सर्वगीर्वाणगणसन्नुताय नमः ||
||इति शुक्र अष्टोत्तरशतनामावलिः सम्पूर्णम् ||
||सूर्य अष्टोत्तरशतनामावलिः ||

सूर्य बीज मन्त्र -
ह्राँ ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः ||

सूर्यं सुन्दर लोकनाथममृतं वेदान्तसारं शिवम्
ज्ञानं ब्रह्ममयं सुरेशममलं लोकैकचित्तं स्वयम् ||
इन्द्रादित्य नराधिपं सुरगुरुं त्रैलोक्यचूडामणिम्
ब्रह्मा विष्णु शिव स्वरूप हृदयं वन्दे सदा भास्करम् ||

अरुणाय नमः |
शरण्याय नमः |
करुणारससिन्धवे नमः |
असमानबलाय नमः |
आर्तरक्षकाय नमः |
आदित्याय नमः |
आदिभूताय नमः | 
अखिलागमवेदिने नमः |
अच्युताय नमः |
अखिलज्ञाय नमः ||१०||
अनन्ताय नमः |
इनाय नमः |
विश्वरूपाय नमः |
इज्याय नमः |
इन्द्राय नमः |
भानवे नमः |
इन्दिरामन्दिराप्ताय नमः |
वन्दनीयाय नमः |
ईशाय नमः |
सुप्रसन्नाय नमः ||२०||
सुशीलाय नमः |
सुवर्चसे नमः |
वसुप्रदाय नमः |
वसवे नमः |
वासुदेवाय नमः |
उज्ज्वलाय नमः |
उग्ररूपाय नमः |
ऊर्ध्वगाय नमः |
विवस्वते नमः |
उद्यत्किरणजालाय नमः ||३०
हृषीकेशाय नमः |
ऊर्जस्वलाय नमः |
वीराय नमः |
निर्जराय नमः |
जयाय नमः |
ऊरुद्वयाभावरूपयुक्तसारथये नमः |
ऋषिवन्द्याय नमः |
रुग्घन्त्रे नमः |
ऋक्षचक्रचराय नमः |
ऋजुस्वभावचित्ताय नमः ||४०
नित्यस्तुत्याय नमः |
ऋकारमातृकावर्णरूपाय नमः |
उज्ज्वलतेजसे नमः |
ऋक्षाधिनाथमित्राय नमः |
पुष्कराक्षाय नमः |
लुप्तदन्ताय नमः |
शान्ताय नमः |
कान्तिदाय नमः |
घनाय नमः |
कनत्कनकभूषाय नमः ||५०
खद्योताय नमः |
लूनिताखिलदैत्याय नमः |
सत्यानन्दस्वरूपिणे नमः |
अपवर्गप्रदाय नमः |
आर्तशरण्याय नमः |
एकाकिने नमः |
भगवते नमः |
सृष्टिस्थित्यन्तकारिणे नमः |
गुणात्मने नमः |
घृणिभृते नमः ||६०
बृहते नमः |
ब्रह्मणे नमः |
ऐश्वर्यदाय नमः |
शर्वाय नमः |
हरिदश्वाय नमः |
शौरये नमः |
दशदिक्संप्रकाशाय नमः |
भक्तवश्याय नमः |
ओजस्कराय नमः |
जयिने नमः ||७०
जगदानन्दहेतवे नमः |
जन्ममृत्युजराव्याधिवर्जिताय नमः |
उच्चस्थान समारूढरथस्थाय नमः |
असुरारये नमः |
कमनीयकराय नमः |
अब्जवल्लभाय नमः |
अन्तर्बहिः प्रकाशाय नमः |
अचिन्त्याय नमः |
आत्मरूपिणे नमः |
अच्युताय नमः ||८०||
अमरेशाय नमः |
परस्मै ज्योतिषे नमः |
अहस्कराय नमः |
रवये नमः |
हरये नमः |
परमात्मने नमः |
तरुणाय नमः |
वरेण्याय नमः |
ग्रहाणांपतये नमः |
भास्कराय नमः ||९०
आदिमध्यान्तरहिताय नमः |
सौख्यप्रदाय नमः |
सकलजगतांपतये नमः |
सूर्याय नमः |
कवये नमः |
नारायणाय नमः |
परेशाय नमः |
तेजोरूपाय नमः |
श्रीं हिरण्यगर्भाय नमः |
ह्रीं सम्पत्कराय नमः ||१००
ऐं इष्टार्थदायनमः |
अनुप्रसन्नाय नमः |
श्रीमते नमः |
श्रेयसेनमः |
भक्तकोटिसौख्यप्रदायिने नमः |
निखिलागमवेद्याय नमः |
नित्यानन्दाय नमः |
सूर्याय नमः ||१०८||
||इति सूर्य अष्टोत्तरशतनामावलिः सम्पूर्णम् ||

||सूर्यकवच ||
     श्रीभैरव उवाच
यो देवदेवो भगवान् भास्करो महसां निधिः.
गयत्रीनायको भास्वान् सवितेति प्रगीयते ||||
तस्याहं कवचं दिव्यं वज्रपञ्जरकाभिधम्.
सर्वमन्त्रमयं गुह्यं मूलविद्यारहस्यकम् ||||
सर्वपापापहं देवि दुःखदारिद्र्यनाशनम्.
महाकुष्ठहरं पुण्यं सर्वरोगनिवर्हणम् ||||
सर्वशत्रुसमूहघ्नं सम्ग्रामे विजयप्रदम्.
सर्वतेजोमयं सर्वदेवदानवपूजितम् ||||
रणे राजभये घोरे सर्वोपद्रवनाशनम्.
मातृकावेष्टितं वर्म भैरवानननिर्गतम् ||||
ग्रहपीडाहरं देवि सर्वसङ्कटनाशनम्.
धारणादस्य देवेशि ब्रह्मा लोकपितामहः ||||
विष्णुर्नारायणो देवि रणे दैत्याञ्जिओष्यति.
शङ्करः सर्वलोकेशो वासवोऽपि दिवस्पतिः ||||
ओषधीशः शशी देवि शिवोऽहं भैरवेश्वरः.
मन्त्रात्मकं परं वर्म सवितुः सारमुत्तमम् ||||
यो धारयेद् भुजे मूर्ध्नि रविवारे महेश्वरि.
राजवल्लभो लोके तेजस्वी वैरिमर्दनः ||||
बहुनोक्तेन किं देवि कवचस्यास्य धारणात्.
इह लक्ष्मीधनारोग्य-वृद्धिर्भवति नान्यथा ||१०||
परत्र परमा मुक्तिर्देवानाअमपि दुर्लभा.
कवचस्यास्य देवेशि मूलविद्यामयस्य ||११||
वज्रपञ्जरकाख्यस्य मुनिर्ब्रह्मा समीरितः.
गायत्र्यं छन्द इत्युक्तं देवता सविता स्मृतः ||१२||
माया बीजं शरत् शक्तिर्नमः कीलकमीश्वरि.
सर्वार्थसाधने देवि विनियोगः प्रकीर्तितः ||१३||
ओं अं आं इं ईं शिरः पातु ओं सूर्यो मन्त्रविग्रहः.
उं ऊं ऋं ॠं ललाटं मे ह्रां रविः पातु चिन्मयः ||१४||
ऌं ॡं एं ऐं पातु नेत्रे ह्रीं ममारुणसारथिः.
ओं औं अं अः श्रुती पातु सः सर्वजगदीश्वरः ||१५||
कं खं गं घं पातु गण्डौ सूं सूरः सुरपूजितः.
चं छं जं झं नासां मे पातु यार्ं अर्यमा प्रभुः ||१६||
टं ठं डं ढं मुखं पायाद् यं योगीश्वरपूजितः.
तं थं दं धं गलं पातु नं नारायणवल्लभः ||१७||
पं फं बं भं मम स्कन्धौ पातु मं महसां निधिः.
यं रं लं वं भुजौ पातु मूलं सकनायकः ||१८||
शं षं सं हं पातु वक्षो मूलमन्त्रमयोइ ध्रुवः.
ळं क्षः कुक्ष्सिं सदा पातु ग्रहाथो दिनेश्वरः ||१९||
ङं ञं णं नं मं मे पातु पृष्ठं दिवसनायकः.
अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ॠं नाभिं पातु तमोपहः ||२०||
ऌं ॡं एं ऐं ओं औं अं अः लिङ्गं मेऽव्याद् ग्रहेश्वरः.
कं खं गं घं चं छं जं झं कटिं भानुर्ममावतु ||२१||
टं ठं डं ढं तं थं दं धं जानू भास्वान् ममावतु.
पं फं बं भं यं रं लं वं जङ्घे मेऽअव्याद् विभाकरः ||२२||
शं षं सं हं ळं क्षः पातु मूलं पादौ त्रयितनुः.
ङं ञं णं नं मं मे पातु सविता सकलं वपुः ||२३||
सोमः पूर्वे मां पातु भौमोऽग्नौ मां सदावतु.
बुधो मां दक्षिणे पातु नैऋत्या गुररेव माम् ||२४||
पश्चिमे मां सितः पातु वायव्यां मां शनैश्चरः.
उत्तरे मां तमः पायादैशान्यां मां शिखी तथा ||२५||
ऊर्ध्वं मां पातु मिहिरो मामधस्ताञ्जगत्पतिः.
प्रभाते भास्करः पातु मध्याह्ने मां दिनेश्वरः ||२६||
सायं वेदप्रियः पातु निशीथे विस्फुरापतिः.
सर्वत्र सर्वदा सूर्यः पातु मां चक्रनायकः ||२७||
रणे राजकुले द्यूते विदादे शत्रुसङ्कटे.
सङ्गामे ज्वरे रोगे पातु मां सविता प्रभुः ||२८||
ओं ओं ओं उत ओंउॐ यः सूरोऽवतान्मां भयाद्.
ह्रां ह्रीं ह्रुं हहहा हसौः हसहसौः हंसोऽवतात् सर्वतः.
सः सः सः सससा नृपाद्वनचराच्चौराद्रणात् संकटात्.
पायान्मां कुलनायकोऽपि सविता ओं ह्रीं सौः सर्वदा ||२९||
द्रां द्रीं द्रूं दधनं तथा तरणिर्भांभैर्भयाद् भास्करो
रां रीं रूं रुरुरूं रविर्ज्वरभयात् कुष्ठाच्च शूलामयात्.
अं अं आं विविवीं महामयभयं मां पातु मार्तण्डको
मूलव्याप्ततनुः सदावतु परं हंसः सहस्रांशुमान् ||३०||
इति श्रीकवच्चं दिव्यं वज्रपञ्जरकाभिधम्.
सर्वदेवरहस्यं मातृकामन्त्रवेष्टितम् ||३१||
महारोगभयघ्नं पापघ्नं मन्मुखोदितम्.
गुह्यं यशस्करं पुण्यं सर्वश्रेयस्करं शिवे ||३२||
लिखित्वा रविवारे तु तिष्ये वा जन्मभे प्रिये.
Sटगन्धेन दिव्येन सुधाक्षीरेण पार्वति ||३३||
अर्कक्षीरेण पुण्येन भूर्जत्वचि महेश्वरि.
कनकीकाष्ठलेखन्या कवचं भास्करोदये ||३४||
श्वेतसूत्रेण रक्तेन श्यामेनावेष्टयेद् गुटीम्.
सौवर्णेनाथ संवेष्ठ्य धारयेन्मूर्ध्नि वा भुजे ||३५||
रणे रिपूञ्जयेद् देवि वादे सदसि जेष्यति.
राजमान्यो भवेन्नित्यं सर्वतेजोमयो भवेत् ||३६||
कण्ठस्था पुत्रदा देवि कुक्षिस्था रोगनाशिनी.
शिरःस्था गुटिका दिव्या राकलोकवशङ्करी ||३७||
भुजस्था धनदा नित्यं तेजोबुद्धिविवर्धिनी.
वन्ध्या वा काकवन्ध्या वा मृतवत्सा याङ्गना ||३८||
कण्ठे सा धारयेन्नित्यं बहुपुत्रा प्रजायये.
यस्य देहे भवेन्नित्यं गुटिकैषा महेश्वरि ||३९||
महास्त्राणीन्द्रमुक्तानि ब्रह्मास्त्रादीनि पार्वति.
तद्देहं प्राप्य व्यर्थानि भविष्यन्ति संशयः ||४०||
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं कवचं वज्रपञ्जरम्.
तस्य सद्यो महादेवि सविता वरदो भवेत् ||४१||
अज्ञात्वा कवचं देवि पूजयेद् यस्त्रयीतनुम्.
तस्य पूजार्जितं पुण्यं जन्मकोटिषु निष्फलम् ||४२||
शतावर्तं पठेद्वर्म सप्तम्यां रविवासरे.
महाकुष्ठार्दितो देवि मुच्यते नात्र संशयः ||४३||
निरोगो यः पठेद्वर्म दरिद्रो वज्रपञ्जरम् |
लक्ष्मीवाञ्जायते देवि सद्यः सूर्यप्रसादतः ||४४||
भक्त्या यः प्रपठेद् देवि कवचं प्रत्यहं प्रिये.
इह लोके श्रियं भुक्त्वा देहान्ते मुक्तिमाप्नुयात् ||४५||
इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे श्रीदेविरहस्ये
वज्रपञ्जराख्यसूर्यकवचनिरूपणं त्रयस्त्रिंशः पटलः ||३३ ||

||सूर्यमंडलाष्टकं ||

                     अथ सूर्यमण्डलाष्टकम्
नमः सवित्रे जगदेकचक्षुषे | जगत्प्रसूती स्थिति नाश हेतवे |
त्रयीमयाय त्रिगुणात्म धारिणे | विरञ्चि नारायण शङ्करात्मन् ||||
यन्मण्डलं दीप्तिकरं विशालं | रत्नप्रभं तीव्रमनादि रूपम् |
दारिद्र्य दुखक्षयकारणं | पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ||||
यन्मण्डलं देव गणैः सुपूजितं | विप्रैः स्तुतं भावनमुक्ति कोविदम् |
तं देवदेवं प्रणमामि सूर्यं | पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ||||
यन्मण्डलं ज्ञान घनं त्वगम्यं | त्रैलोक्य पूज्यं त्रिगुणात्म रूपम् |
समस्त तेजोमय दिव्यरूपं | पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ||||
यन्मण्डलं गुढ़मति प्रबोधं | धर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानाम् |
यत्सर्व पाप क्षयकारणं | पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ||||
यन्मण्डलं व्याधि विनाश दक्षं | यदृग्यजुः सामसु संप्रगीतम् |
प्रकाशितं येन भूर्भुवः स्वः | पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ||||
यन्मण्डलं वेदविदो वदन्ति | गायन्ति यच्चारण सिद्ध सङ्घाः |
यद्योगिनो योगजुषां सङ्घाः | पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ||||
यन्मण्डलं सर्वजनेषु पूजितं | ज्योतिश्चकुर्यादिह मर्त्यलोके |
यत्कालकल्प क्षयकारणं | पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ||||
यन्मण्डलं विश्वसृजं प्रसीदमुत्पत्तिरक्षा प्रलय प्रगल्भम् |
यस्मिञ्जगत्संहरतेऽखिलं | पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ||||
यन्मण्डलं सर्वगतस्य विष्णोरात्मा | परं धाम विशुद्धतत्त्वम् |
सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्ये | पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ||१०||
यन्मण्डलं वेदविदो विदन्ति | गायन्ति तच्चारणसिद्ध सङ्घाः |
यन्मण्डलं वेदविदो स्मरन्ति | पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ||११||
यन्मण्डलं वेदविदोपगीतं | यद्योगिनां योग पथानुगम्यम् |
तत्सर्व वेदं प्रणमामि सूर्यं | पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ||१२||

.. श्री सूर्य सहस्रनाम स्तोत्रम्  ..
. अथ भविष्यपुराणान्तर्गत- सूर्यसहस्रनामस्तोत्रम् .
 विश्वजिद् विश्वजित्कर्ता विश्वात्मा विश्वतोमुखः .
विश्वेश्वरो विश्वयोनिर्नियतात्मा जितेन्द्रियः .. ..
कालाश्रयः कालकर्ता कालहा कालनाशनः .
महायोगी महाबुद्धिर्महात्मा सुमहाबलः .. ..
प्रभुर्विभुर्भूतनाथो भूतात्मा भुवनेश्वरः .
भूतभव्यो भावितात्मा भूतान्तःकरणः शिवः .. ..
शरण्यः कमलानन्दो नन्दनो नन्दवर्धनः .
वरेण्यो वरदो योगी सुसंयुक्तः प्रकाशकः .. ..
वाक्प्राणः परमः प्राणः प्रीतात्मा प्रियतः प्रियः .
नयः सहस्रपात् साधुर्दिव्यकुण्डलमण्डितः .. ..
अव्यङ्गधारी धीरात्मा प्रचेता वायुवाहनः .
समाहितमतिर्धाता विधाता कृतमङ्गलः .. ..
कपर्दी कल्पकृद्रुद्रः सुमना धर्मवत्सलः .
समायुक्तो विमुक्तात्मा कृतात्मा कृतिनांवरः .. ..
अविचिन्त्यवपुः श्रेष्ठो महायोगी महेश्वरः .
कान्तः कामादिरादित्यो नियतात्मा निराकुलः .. ..
कामः कारुणिकः कर्ता कमलाकरबोधनः .
सप्तसप्तिरचिन्त्यात्मा महाकारुणिकोत्तमः .. ..
संजीवनो जीवनाथो जगज्जीवो जगत्पतिः .
अजयो विश्वनिलयः संविभागो वृषध्वजः .. १०..
वृषाकपिः कल्पकर्ता कल्पान्तकरणो रविः .
एकचक्ररथो मौनी सुरथो रथिनांवरः .. ११..
अक्रोधनो रश्मिमाली तेजोराशिर्विभावसुः .
दिव्यकृद् दिनकृद् देवो देवदेवो दिवस्पतिः .. १२..
धीरानाथो हविर्होता दिव्यबाहुर्दिवाकरः .
यज्ञो यज्ञपतिः पूषा स्वर्णरेताः परावहः .. १३..
परापरज्ञस् तरणिरंशुमाली मनोहरः .
प्राज्ञः प्रजापतिः सूर्यः सविता विष्णुरंशुमान् .. १४..
सदागतिर्गन्धबाहुर्विहितो विधिराशुगः .
पतङ्गः पतगः स्थाणुर्विहङ्गो विहगो वरः .. १५..
हर्यश्वो हरिताश्वश्च हरिदश्वो जगत्प्रियः .
त्र्यंबकः सर्वदमनो भावितात्मा भिषग्वरः .. १६..
आलोककृल्लोकनाथो लोकालोकनमस्कृतः .
कालः कल्पान्तको वह्निस्तपनः सम्प्रतापनः .. १७..
विरोचनो विरूपाक्षः सहस्राक्षः पुरंदरः .
सहस्ररश्मिर्मिहिरो विविधाम्बरभूषणः .. १८..
खगः प्रतर्दनो धन्यो हयगो वाग्विशारदः .
श्रीमांश्च शिशिरो वाग्मी श्रीपतिः श्रीनिकेतनः .. १९..
श्रीकण्ठः श्रीधरः श्रीमान् श्रीनिवासो वसुप्रदः .
कामचारो महामायो महेशो विदिताशयः .. २०..
तीर्थक्रियावान् सुनयो विभवो भक्तवत्सलः .
कीर्तिः कीर्तिकरो नित्यः कुण्डली कवची रथी .. २१..
हिरण्यरेताः सप्ताश्वः प्रयतात्मा परंतपः .
बुद्धिमान् अमरश्रेष्ठो रोचिष्णुः पातशासनः .. २२..
समुद्रो धनदो धाता मान्धाता कश्मलापहः .
तमोघ्नो ध्वान्तहा वह्निर्होतान्तःकरणो गुहः .. २३..
पशुमान् प्रयतानन्दो भूतेशः श्रीमतांवरः .
नित्योऽदितो नित्यरथः सुरेशः सुरपूजितः .. २४..
अजितो विजयो जेता जङ्गमस्थावरात्मकः .
जीवानन्दो नित्यकामी विजेता विजयप्रदः .. २५..
पर्जन्योऽग्निः स्थितिस्थेयः स्थविरोऽणुर्निरञ्जनः .
प्रद्योतनो रथारूढः सर्वलोकप्रकाशकः .. २६..
ध्रुवो मेधी महावीर्यो हंसः संसारतारकः .
सृष्टिकर्ता क्रियाहेतुर्मार्तण्डो मरुतांपतिः .. २७..
मरुत्वान् दहनः स्पष्टा भगो भाग्योऽर्यमापतिः .
वरुणांशो जगन्नाथः कृतकृत्यः सुलोचनः .. २८..
विवस्वान् भानुमान् कार्यकारणं तेजसांनिधिः .
असङ्गवामी तिग्मांशुर्धर्मादिर्दीप्तदीधितिः .. २९..
सहस्रदीधितिर्भघ्नः सहस्रांशुर्दिवाकरः .
गभस्तिमान् दीधितिमान् स्रग्विमान् अतुलद्युतिः .. ३०..
भास्करः सुरकार्यज्ञः सर्वज्ञस् तीक्ष्णदीधितिः .
सुरज्येष्ठः सुरपतिर्बहुज्ञोवचसांपतिः .. ३१..
तेजोनिधिर्बृहत्तेजा बृहत्कीर्तिर्बृहस्पतिः .
अहिमानूर्जितो धीमान् आमुक्तः कीर्तिवर्धनः .. ३२..
महावैद्याग्रेणपतिर्गणेशो गणनायकः .
तीव्रप्रतापनस् तापी तापनो विश्वतापनः .. ३३..
कार्तस्वरो हृषीकेशः पद्मानन्दोऽभिनन्दितः .
पद्मनाभोऽमृताहारः स्थितिमान् केतुमान् नभः .. ३४..
अनाद्यन्तोऽच्युतो विश्वो विश्वामित्रो घृणी विराट् .
आमुक्तः कवची वाग्मी कञ्चुकी विश्वभावनः .. ३५..
अनिमित्तगतिः श्रेष्ठः शरण्यः सर्वतोमुखः .
विगाहीरेणुरसहः समायुक्तः समाहितः .. ३६..
धर्मकेतुर्धर्मरतिः संहर्ता संयमोयमः .
प्रणतार्तिहरो वादी सिद्धकार्यो जनेश्वरः .. ३७..
नभो विगाहनः सत्यः स्थामसः सुमनो हरः .
हारी हरिर्हरो वायुरृतुः कालानलद्युतिः .. ३८..
सुखसेव्यो महातेजा जगतामन्तकारणम् .
महेन्द्रो विष्टुतः स्तोत्रं स्तुतिहेतुः प्रभाकरः .. ३९..
सहस्रकल आयुष्मान् अरोषः सुखदः सुखी .
व्याधिहा सुखदः सौख्यं कल्याणः कल्पिनांवरः .. ४०..
आरोग्यकर्मणां सिद्धिर्वृद्धिरृद्धिरहस्पतिः .
हिरण्यरेता आरोग्यं विद्वान् बन्धुर्बुधो महान् .. ४१..
प्रणवान् धृतिमान् धर्मो धर्मकर्ता रुचिप्रदः .
सर्वप्रियः सर्वसहः सर्वशत्रुनिवारुणः .. ४२..
प्रांशुर्विद्योतनो द्योतः सहस्रकिरणः कृतिः .
केयूरभूषणोद्भासी भासितो भासनोऽनलः .. ४३..
शरण्यार्तिहरो होता खद्योतः खगसत्तमः .
सर्वद्योतोऽमवद्द्योतः सर्वद्युतिकरोऽमलः .. ४४..
कल्याणः कल्याणकरः कल्पः कल्पकरः कविः .
कल्याणकृत् कल्पवपुः सर्वकल्याणभाजनः .. ४५..
शान्तिप्रियः प्रसन्नात्मा प्रशान्तः प्रशमप्रियः .
उदारकर्मा सुनयः सुवर्चा वर्चसोज्ज्वलः .. ४६..
वर्चस्वी वर्चसामीशस् त्रैलोक्येशो वशानुगः .
तेजस्वी सुयशावर्णिर्वर्णाध्यक्षो बलिप्रियः .. ४७..
यशस्वी वेदनिलयस् तेजस्वी प्रकृतिस्थितः .
आकाशगः शीघ्रगतिराशुगः श्रुतिमान् खगः .. ४८..
गोपतिर्ग्रहदेवेशो गोमान् एकः प्रभञ्जनः .
जनिताप्रजगण्डीवो दीपः सर्वप्रकाशकः .. ४९..
कर्मसाक्षी योगनित्यो नभस्वान् असुरान्तकः .
रक्षोघ्नो विघ्नशमनः किरीटी सुमनःप्रियः .. ५०..
मरीचिमाली सुमतिः कृतातिथ्योऽविशेषतः .
शिष्टाचारः शुभाकारः स्वाचारा चारतत्परः .. ५१..
मन्दारो माठरो रेणुः क्षोभणः पक्षिणाङ्गुरुः .
स्वविशिष्टो विशिष्टात्मा विधेयो ज्ञानशोभनः .. ५२..
महाश्वेता प्रियो ज्ञेयः सामगो मोददायकः .
सर्ववेदप्रगीतात्मा सर्ववेदो गयालयः .. ५३..
वेदमूर्तिश्चतुर्वेदो वेदभृद् वेदपारगः .
क्रियावान् अतिरोचिष्णुर्वरीयांश्च वरप्रदः .. ५४..
व्रतधारी व्रतधरो लोकबन्धुरलंकृतः .
अलंकाराक्षरो दिव्यविद्यावान् विदिताशयः .. ५५..
अकारो भूषणो भूष्यो भूष्णुर्भवनपूजितः .
चक्रपाणिर्वज्रधरः सुवेशो लोकवत्सलः .. ५६..
राज्ञीपतिर्महाबाहुः प्रकृतिर्विकृतिर्गुणः .
अन्धकारापहः श्रेष्ठो युगावर्तो युगादिकृत् .. ५७..
अप्रमेयः सदायोगी निरहंकार ईश्वरः .
शुभप्रदः शुभशोभा शुभकर्मा शुभास्पदः .. ५८..
सत्यवान् धृतिमान् अर्च्यो ह्यकारो वृद्धिदोऽनलः .
बलभृद् बलगो बन्धुर्बलवान् हरिणांवरः .. ५९..
अनङ्गोऽनागराणिन्द्रः पद्मयोनिर्गणेश्वरः .
संवत्सर ऋतुर्नेता कालचक्रप्रवर्तकः .. ६०..
पद्मेक्षरः पद्मयोनिः प्रभवोऽनसरद्युतिः .
सुमूर्तिः सुमतिः सोमो गोविन्दो जगदादिजः .. ६१..
पीतवासाः कृष्णवासा दिग्वासातीन्द्रियो हरिः .
अतीन्द्रोऽनेकरूपात्मा स्कन्दः परपुरंजयः .. ६२..
शक्तिमान् सूरधृग् भास्वान् मोक्षहेतुरयोनिजः .
सर्वदर्शोऽदितो दर्शो दुःस्वप्नाशुभनाशनः .. ६३..
माङ्गल्यकर्ता करणिर्वेगवान् कश्मलापहः .
स्पष्टाक्षरो महामन्त्रो विशाखो यजनप्रियः .. ६४..
विश्वकर्मा महाशक्तिर्ज्योतिरीशविहंगमः .
विचक्षणो दक्ष इन्द्रः प्रत्यूहः प्रियदर्शनः .. ६५..
अश्विनौ वेदनिलयो वेदविद् विदिताशयः .
प्रभाकरो जितरिपुः सुजनोऽरुणसारथिः .. ६६..
कुबेरसुरथः स्कन्दो महितोऽभिहितो गुहुः .
ग्रहराजो ग्रहपतिर्ग्रहनक्षत्रमण्डनः .. ६७..
भास्करः सततानन्दो नन्दनो नन्दिवर्धनः .
मङ्गलोऽप्यथ मङ्गलवान् माङ्गल्योऽमङ्गलापहः .. ६८..
मङ्गलाचारचरितः शीर्णः सर्वव्रतो व्रती .
चतुर्मुखः पद्ममाली पूतात्मा प्रणतार्तिहा .. ६९..
अकिञ्चनः सत्यसन्धो निर्गुणो गुणवान् गुणी .
सम्पूर्णः पुण्डरीकाक्षो विधेयो योगतत्परः .. ७०..
सहस्रांशुः क्रतुपतिः सर्वस्वं सुमतिः सुवाक् .
सुभामनो माल्यदामा घृताहारो हरिप्रियः .. ७१..
ब्रह्मप्रचेता प्रथितः प्रतीतात्मा स्थिरात्मकः .
शतबिन्दुः शतमखो गरीयान् अनलप्रभुः .. ७२..
धीरो महत्तरो धन्यः पुरुषः पुरुषोत्तमः .
विद्याधराधिराजोऽहिविद्यावान् भूतिदस्थितः ..७३..
अनिर्देश्यवपुः श्रीमान् विश्वात्मा बहुमङ्गलः .
सुस्थितः सुरथः स्वर्णो मोक्षाधारनिकेतनः .. ७४..
निर्द्वन्द्वो द्वन्द्वहा सर्गः सर्वगः सम्प्रकाशयः .
दयालुः सूक्ष्मरीः शान्तिः क्षेमाक्षेमस्थितिप्रियः .. ७५..
भूतरो भूपतिर्वक्ता पवित्रात्मा त्रिलोचनः .
महावराहः प्रियकृद् धाता भोक्ताभयप्रदः .. ७६..
चतुर्वेदधरो नित्यो विनिद्रो विविधाशनः .
चक्रवर्ती धृतिकरः सम्पूर्णोऽथ महेश्वरः .. ७७..
विचित्ररथ एकाकी सप्तसप्तिः परात्परः .
सर्वोदधिस्थितिकरः स्थितिस्थेयः स्थितिप्रियः .. ७८..
निष्कलः पुष्करनिभो वसुमान् वासवप्रियः .
वसुमान् वासवस्वामी वसुराता वसुप्रदः .. ७९..
बलवान् ज्ञानवांस्तत्त्वम् ओंकारस् तृषुसंस्थितः .
संकल्पयोनिर्दिनकृद् भगवान् कारणावहः .. ८०..
नीलकण्ठो धनाध्यक्षश्चतुर्वेदप्रियंवदः .
वषट्कारो हुतं होता स्वाहाकारो हुताहुतिः .. ८१..
जनार्दनो जनानन्दो नरो नारायणोऽम्बुदः .
स्वर्णाङ्गक्षपणो वायुः सुरा सुरनमस्कृतः .. ८२..
विग्रहो विमलो बिन्दुर्विशोको विमलद्युतिः .
द्योतितो द्योतनो विद्वान् विविद्वान् वरदो बली .. ८३..
धर्मयोनिर्महामोहो विष्णुभ्राता सनातनः .
सावित्रीभावितो राजा विसृतो विघृणी विराट् .. ८४..
सप्तार्चिः सप्ततुरगः सप्तलोकनमस्कृतः .
सम्पन्नोऽथ जगन्नाथः सुमनाः शोभनप्रियः .. ८५..
सर्वात्मा सर्वकृत् सृष्टिः सप्तिमान् सप्तमीप्रियः .
सुमेधा माधवो मेध्यो मेधावी मधुसूदनः .. ८६..
अङ्गिरा गतिकालज्ञो धूमकेतुसुकेतनः .
सुखी सुखप्रदः सौख्यं कामी कान्तिप्रियो मुनिः .. ८७..
संतापनः संतपन आतपी तपसांपतिः .
उग्रश्रवा सहस्रोस्रः प्रियङ्कारो प्रियङ्करः .. ८८..
प्रीतो विमन्युरम्भोदो जीवनो जगतांपतिः .
जगत्पिता प्रीतमनाः सर्वः शर्वो गुहावलः .. ८९..
सर्वगो जगदानन्दो जगन्नेता सुरारिहा .
श्रेयः श्रेयस्करो ज्यायानुत्तमोत्तम उत्तमः .. ९०..
उत्तमोऽथ महामेरुर्धारणो धरणीधरः .
धाराधरो धर्मराजो धर्माधर्मप्रवर्तकः .. ९१..
रथाध्यक्षो रथपतिस् त्वरमाणोऽमितानलः .
उत्तरोऽनुत्तरस् तापी तारापतिरपांपतिः .. ९२..
पुण्यसंकीर्तनः पुण्यो हेतुर्लोकत्रयाश्रयः .
स्वर्भानुर्विहगारिष्टो विशिष्टोत्कृष्टकर्मकृत् .. ९३..
व्याधिप्रणाशनः क्षेमः शूरः सर्वजिताम्बरः .
एकनाथो रथाधीशः शनैश्चरपितासितः .. ९४..
वैवस्वतगुरुर्मृत्युर्धर्मनित्यो महाव्रतः .
प्रलम्बहारः संचारी प्रद्योतो द्योतितोऽनलः .. ९५..
संतानकृत् परो मन्त्रो मन्त्रमूर्तिर्महाबलः .
श्रेष्ठात्मा सुप्रियः शम्भुर्महतामीश्वरेश्वरः .. ९६..
संसारगतिविच्छेता संसारार्णवतारकः .
सप्तजिह्वः सहस्रार्ची रत्नगर्भोऽपराजितः .. ९७..
धर्मकेतुरमेयात्मा धर्माधर्मवरप्रदः .
लोकसाक्षी लोकगुरुर्लोकेशश् छन्दवाहनः .. ९८..
धर्मरूपः सूक्ष्मवायुर्धनुष्पाणिर्धनुर्धरः .
पिनाकधृन् महोत्साहो नैकमायो महाशनः .. ९९..
वारः शक्तिमतांश्रेष्ठः सर्वशस्त्रभृतांवरः .
ज्ञानगम्यो दुराराध्यो लोहिताङ्गोऽरिमर्दनः .. १००..
अनन्तो धर्मदो नित्यो धर्मकृच्चित् त्रिविक्रमः .
दैवत्रस् त्र्यक्षरो मध्यो नीलाङ्गो नीललोहितः .. १०१..
एकोऽनेकस् त्रयीव्यासः सविता समितिञ्जयः .
शार्ङ्गधन्वानलो भीमः सर्वप्रहरणायुधः .. १०२..
परमेष्ठी परंज्योतिर्नाकपाली दिवस्पतिः .
वदान्यो वासुकिर्वैद्य आत्रेयोऽतिपराक्रमः .. १०३..
द्वापरः परमोदारः परमब्रह्मचर्यवान् .
उद्दीप्तवेषो मुकुटी पद्महस्तोऽहिमांशुभृत् .. १०४..
स्मितः प्रसन्नवदनः पद्मोदरनिभाननः .
सायंदिवा दिव्यवपुरनिर्देश्यो महारथः .. १०५..
महारथो महानीशः शेषः सत्त्वरजस्तमः .
धृतातपत्रः प्रतिमो विमर्शी निर्णयस्थितः .. १०६..
अहिंसकः शुद्धमतिरद्वितीयो विमर्दनः .
सर्वदो धनदो मोक्षो विहारी बहुदायकः .. १०७..
ग्रहनाथो ग्रहपतिर्ग्रहेशस् तिमिरापहः .
मनो हरवपुः शुभ्रः शोभनः सुप्रभाननः .. १०८..
सुप्रभः सुप्रभाकारः सुनेत्रो निक्षुभापतिः .
राज्ञीप्रियः शब्दकरो ग्रहेशस् तिमिरापहः .. १०९..
सैंहिकेयरिपुर्देवो वरदो वरनायकः .
चतुर्भुजो महायोगी योगीश्वरपतिस् तथा .. ११०..
अनादिरूपोऽदितिजो रत्नकान्तिः प्रभामयः .
जगत्प्रदीपो विस्तीर्णो महाविस्तीर्णमण्डलः .. १११..
एकचक्ररथः स्वर्णरथः स्वर्णशरीरधृक् .
निरालम्बो गगनरो धर्मकर्मप्रभावकृत् .. ११२..
धर्मात्मा कर्मणांसाक्षी प्रत्यक्षः परमेश्वरः .
मेरुसेवी सुमेधावी मेरुरक्षाकरो महान् .. ११३..
आधारभूको रतिमांस्तथा  धनधान्यकृत् .
पापसंतापसंहर्ता मनोवांछितदायकः .. ११४..
लोकहर्ता राज्यदायी रमणीयगुणोऽनृणी .
कालत्रयानन्तरूपो मुनिवृन्दनमस्कृतः .. ११५..
संध्यारागकरः सिद्धः संध्यावन्दनवन्दितः .
साम्राज्यदाननिरतः समाराधनतोषवान् .. ११६..
भक्तदुःखक्षयकरो भवसागरतारकः .
भयापहर्ता भगवान् अप्रमेयपराक्रमः .. ११७..
मनुस्वामी मनुपतिर्मान्यो मन्वन्तराधिपः .. ११८..
.. इति श्री भविष्ये महापुराणे सूर्यसहस्रनाम स्तोत्रं सम्पूर्णम्
..
.. मन्त्रपुष्पांजलि ..
 
 योऽपां पुष्पं वेद . पुष्पवान् प्रजावान् पशुमान् भवति . 
चंद्र मा वा अपां पुष्पम् . पुष्पवान् प्रजावान् पशुमान् भवति . 
 एवं वेद . योऽपामायतनं वेद . आयतनवान् भवति .. .. 
 
अग्निर्वा अपामायतनम् . आयतनवान् भवति . 
योऽग्नेरायतनं वेद . आयतनवान् भवति . 
आपो वा अग्नेरायतनम् . आयतनवान् भवति . 
 एवं वेद . योऽपामायतनं वेद . आयतनवान् भवति .. .. 
 
वायुर्वा अपामायतनम् . आयतनवान् भवति . 
यो वायोरायतनं वेद . आयतनवान् भवति . 
आपो वै वायोरायतनम् . आयतनवान् भवति . 
 एवं वेद . योऽपामायतनं वेद . आयतनवान् भवति .. .. 
 
असौ वै तपन्नपामायतनम् . आयतनवान् भवति . 
योऽमुष्य तपत आयतनं वेद . आयतनवान् भवति . 
आपो वाऽमुष्य तपतपमयतनम् . आयतनवान् भवति . 
 एवं वेद . योऽपामायतनं वेद . आयतनवान् भवति .. .. 
 
चंद्रमा वा अपामायतनम् . आयतनवान् भवति . 
यश्चंद्रमस आयतनं वेद . आयतनवान् भवति . 
आपो वै चंद्रमस आयतनम् . आयतनवान् भवति . 
 एवं वेद . योऽपामायतनं वेद . आयतनवान् भवति .. .. 
 
नक्षत्राणि वा अपामायतनम् . आयतनवान् भवति . 
यो नक्षत्राणामायतनं वेद . आयतनवान् भवति . 
आपो वै नक्षत्राणामायतनम् . आयतनवान् भवति . 
 एवं वेद . योऽपामायतनं वेद . आयतनवान् भवति .. .. 
 
पर्जन्यो वा अपामायतनम् . आयतनवान् भवति . 
यः पर्जन्यस्यायतनं वेद . आयतनवान् भवति . 
आपो वै पर्जन्यस्यायतनम् . आयतनवान् भवति . 
 एवं वेद . योऽपामायतनं वेद . आयतनवान् भवति .. .. 
 
संवत्सरो वा अपामायतनम् . आयतनवान् भवति . 
यस्संवत्सरस्यायतनं वेद . आयतनवान् भवति . 
आपो वै संवत्सरस्यायतनम् . आयतनवान् भवति . 
 एवं वेद . योऽप्सुनावं प्रतिष्ठितां वेद . प्रत्येव तिष्ठति .. .. 

||श्री सूक्त ( ऋग्वेद) ||

हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् |
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो ममावह ||||
तां आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् |
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ||||
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् |
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ||||
कांसोस्मि तां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् |
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ||||
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलंतीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् |
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ||||
आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः |
तस्य फलानि तपसानुदन्तुमायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ||||
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह |
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ||||
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् |
अभूतिमसमृद्धिं सर्वां निर्णुदमे गृहात् ||||
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् |
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ||||
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि |
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ||१०||
कर्दमेन प्रजाभूतामयि सम्भवकर्दम |
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ||११||
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीतवसमे गृहे |
निचदेवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ||१२||
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् |
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो आवह ||१३||
आर्द्रां यःकरिणीं यष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् |
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो आवह ||१४||
तां आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् |
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावोदास्योश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् ||१५||
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् |
सूक्तं पञ्चदशर्चं श्रीकामः सततं जपेत् ||१६||
पद्मानने पद्म ऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे |
तन्मेभजसि पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ||१७||
अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने |
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ||१८||
पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि |
विश्वप्रिये विश्वमनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि संनिधत्स्व ||१९||
पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम् |
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे ||२०||
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः |
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमस्तु ते ||२१||
वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा |
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ||२३||
क्रोधो मात्सर्यं लोभो नाशुभा मतिः | |
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत् ||२४||
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे |
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ||२५||
विष्णुपत्नीं क्षमादेवीं माधवीं माधवप्रियाम् |
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ||२६||
महालक्ष्मी विद्महे विष्णुपत्नी धीमहि |
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ||२७||
श्रीवर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते |
धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ||२८||
ऋणरोगादि दारिद्य पापंक्षुदपमृत्यवः |
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ||
श्रिये जात श्रिय आनिर्याय श्रियं वयो जनितृभ्यो दधातु |
श्रियं वसाना अमृतत्वमायन् भजन्ति सद्यः सविता विदध्यून् ||
श्रिय एवैनं तच्छ्रियामादधाति |
सन्ततमृचावषट् कृत्यंसंधत्तं सधीयते प्रजया पशुभिः ||
एवं वेद |
महालक्ष्मी विद्महे विष्णुपत्नी धीमहि | तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ||
|| शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||
.. श्री सूक्त ( ऋग्वेद) ..
 
हिर' ण्यवर्णां' हरि' णीं सु' वर्णरज' तस्र' जाम् .
' न्द्रां हि' रण्म' यीं ' क्ष्मीं जात' वेदो ' आव'  .. ..
 
तां ' आव' ' जात' वेदो ' क्ष्मीमन' पगा' मि' ' नीम् .
यस्यां' हिर' ण्यं वि' न्देयं' गामश्वं' पुरु' षान' हम् ..  ..
 
' श्व' पू' र्वां ' थम' ध्यां ' स्तिना' ' दप्र' मोदि' नीम् .
श्रियं' ' दे' वीमुप' ह्वये' श्रीर्मा दे' वी जुषताम् ..  ..
 
कां' सो' स्मि' तां हिर' ण्यप्रा' कारा' मा' र्द्रां ज्वल' न्तीं तृ' प्तां ' र्पय' न्तीम् .
' द्मे' स्थि' तां ' द्मव' र्णां' तामि' होप' ह्वये' श्रियम् ..  ..
 
' न्द्रां प्र' भा' सां ' शसा' ज्वल' न्तीं' श्रियं' लो' के दे' वजु' ष्टामुदा' राम् .
तां ' द्मिनी' मीं' शर' णम' हं प्रप' द्येऽल' क्ष्मीर्मे नश्यतां' त्वां वृ' णे ..  ..
 
' दि' त्यव' र्णे तप' सोऽधि' जा' तो वन' स्पति' स्तव' वृ' क्षोऽथ बि' ल्वः .
तस्य' फला' ' नि' तप' सानु' दन्तुमा' या' न्तरा' याश्च' बा' ह्या अल' क्ष्मीः ..  ..
 
उपै' तु' मां दे' वस' खः की' र्तिश्च' मणि' ना '  .
प्रा' दु' र्भू' तोऽस्मि' राष्ट्रे' ऽस्मिन्की' र्तिमृ' द्धिं ' दातु' मे ..  ..
 
क्षुत्पि' पा' साम' लां ज्ये' ष्ठाम' ' क्ष्मीं नाशया' म्यहम् .
अभू' ति' मस' मृद्धिं'  सर्वां' निर्णुदमे' गृहा' ' त् ..  ..
 
गं' धद्वा' रां दु' राध' र्षां' नि' त्यपु' ष्टां करी' षिणी' ' म् .
' श्वरीं' सर्वभूता' नां' तामि' होप' ह्वये' श्रियम् ..  ..
 
मन' सः' काम' माकू' तिं' वा' चः ' त्यम' शीमहि .
' शू' नां रू' पमन्न' स्य' मयि' श्रीः श्र' यतां' यशः' .. १० ..
 
' र्दमे'  प्र' जाभू' ता' ' यि' सम्भ' वक' र्दम .
श्रियं' वा' सय' मे कु' ले मा' तरं' पद्म' मालि' नीम् .. ११ ..
 
आपः' सृ' जन्तु स्नि' ग्धा' नि' चि' क्ली' तव' समे' गृहे .
निच' दे' वीं मा' तरं' श्रियं' वा' सय' मे कु' ले .. १२ ..
 
' र्द्रां पु' ष्करि' णीं पु' ष्टिं सु' वर्णां हेम' मालि' नीम् .
सू' र्यां हि' रण्म' यीं ' क्ष्मीं जात' वेदो ' आवह .. १३ ..
 
' र्द्रां यः' करि' णीं ' ष्टिं पि' ङ्गलां ' द्म' मालि' नीम् .
' न्द्रां हि' रण्म' यीं ' क्ष्मीं जात' वेदो ' आव'  .. १४ ..
 
तां ' आव' ' जात' वेदो ' क्ष्मीमन' पगा' मि' ' नीम् .
यस्यां' हि' रण्यं' प्रभू' तं' गावो' दा' स्योऽश्वा' ' न्वि' न्देयं' पुरु' षान' हम् .. १५ ..
 
यः शुचिः' प्रय' तो भू' त्वा जु' हुया' ' दाज्य' मन्व' हम् .
सूक्तं' ' ञ्चद' शर्चं'  श्री' कामः' सत' तं ' पेत् .. १६ ..
 
पद्मा' ' ने ' द्म ऊरू' ' द्मा' क्षी ' द्म' सम्भवे .
तन्मे' ' ' जसि ' द्मा' क्षी' ये'  सौ' ' ख्यं ' भाम्' यहम् .. १७ ..
 
अश्व' दा' यी गो' दा' यी' ' नदा' यी ' हाध' ने .
धनं मे' जुषतां दे' वि' ' र्व' का' मांश्च' देहि' मे .. १८ ..
 
पद्मा' नने पद्मविपद्मपत्रे पद्म' प्रिये पद्मदलाय' ताक्षि .
विश्व' प्रिये विश्वमनोनुकू' ले त्वत्पा' दप' द्मं मयि' संनिधत्स्व .. १९ ..
 
पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम् |
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे || २० ||
 
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः |
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमस्तु ते || २१ ||
 
वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा |
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः || २३ ||
 
 क्रोधो   मात्सर्यं  लोभो नाशुभा मतिः | |
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत् || २४ ||
 
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे |
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् || २५ ||
 
विष्णुपत्नीं क्षमादेवीं माधवीं माधवप्रियाम् |
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् || २६ ||
 
महालक्ष्मी  विद्महे विष्णुपत्नी  धीमहि |
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् || २७ ||
 
श्रीवर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते |
धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः || २८ ||
 
ऋणरोगादि दारिद्य पापंक्षुदपमृत्यवः |
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ||
 
श्रिये जात श्रिय आनिर्याय श्रियं वयो जनितृभ्यो दधातु |
श्रियं वसाना अमृतत्वमायन् भजन्ति सद्यः सविता विदध्यून् ||
श्रिय एवैनं तच्छ्रियामादधाति |
सन्ततमृचावषट् कृत्यंसंधत्तं सधीयते प्रजया पशुभिः ||
 एवं वेद |
 
 महालक्ष्मी  विद्महे विष्णुपत्नी  धीमहि | 
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ||
 

||  शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||
source : google
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